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स॒ꣳहि॒तो वि॒श्वसा॑मा॒ सूर्यो॑ गन्ध॒र्वस्तस्य॒ मरी॑चयोऽप्स॒रस॑ऽआ॒युवो॒ नाम॑। स न॑ऽइ॒दं ब्रह्म॑ क्ष॒त्रं पा॑तु॒ तस्मै॒ स्वाहा॒ वाट् ताभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ꣳहि॒त इति॑ सम्ऽहि॒तः। वि॒श्वसा॒मेति॑ वि॒श्वऽसा॑मा। सूर्यः॑। ग॒न्धर्वः॒। तस्य॑। मरी॑चयः। अ॒प्स॒रसः॑। आ॒युवः॑। नाम॑। सः। नः॒। इ॒दम्। ब्रह्म॑। क्ष॒त्रम्। पा॒तु॒। तस्मै॑। स्वाहा॑। वाट्। ताभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप जो (संहितः) सब मूर्तिमान् वस्तु वा सत्पुरुषों के साथ मिला हुआ (सूर्यः) सूर्य (गन्धर्वः) पृथिवी को धारण करनेवाला है (तस्य) उसकी (मरीचयः) किरणें (अप्सरसः) जो अन्तरिक्ष में जाती हैं, वे (आयुवः) सब और से संयोग और वियोग करनेवाली (नाम) प्रसिद्ध हैं अर्थात् जल आदि पदार्थों का संयोग करती और छोड़ती हैं (ताभ्यः) उन अन्तरिक्ष में जाने-आनेवाली किरणों के लिये (विश्वसामा) जिसके समीप सामवेद विद्यमान वह आप (स्वाहा) उत्तम क्रिया से कार्य सिद्धि करो, जिससे वे यथायोग्य काम में आवें, जो आप (तस्मै) उस सूर्य के लिये (स्वाहा) सत्य क्रिया को अच्छे प्रकार युक्त करते हो, (सः) वह आप (नः) हमारे (इदम्) इस (ब्रह्म) विद्वानों और (क्षत्रम्) शूरवीरों के कुल तथा (वाट्) कामों के निर्वाह करने की (पातु) रक्षा करो ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सूर्य की किरणों का युक्ति के साथ सेवन कर, विद्या और शूरवीरता को बढ़ा के अपने प्रयोजन को सिद्ध करें ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(संहितः) सर्वैर्भूतैर्द्रव्यैः सत्पुरुषैर्वा सह मिलितः (विश्वसामा) विश्वं सर्वं साम सन्निधौ समीपे यस्य सः (सूर्यः) सविता (गन्धर्वः) यो गां पृथिवीं धरति सः (तस्य) (मरीचयः) किरणाः। मृकणिभ्यामीचिः ॥ (उणा०४.१७०) (अप्सरसः) या अप्स्वन्तरिक्षे सरन्ति गच्छन्ति ताः (आयुवः) समन्तात् संयोजका वियोजकाश्च (नाम) ख्यातिः (सः) (नः) (इदम्) वर्त्तमानम् (ब्रह्म) विद्वत्कुलम् (क्षत्रम्) शूरवीरकुलम् (पातु) रक्षतु (तस्मै) (स्वाहा) सत्यां क्रियाम् (वाट्) वहनम् (ताभ्यः) अप्सरोभ्यः (स्वाहा) सुष्ठु क्रियया ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! भवान् यः संहितो सूर्यो गन्धर्वोऽस्ति, तस्य मरीचयोऽप्सरस आयुवो नाम सन्ति, ताभ्यो विश्वसामा स्वाहा कार्यसिद्धिं करोतु, यस्त्वं तस्मै स्वाहा प्रयुङ्ऽक्षे, स भवान् न इदं ब्रह्म क्षत्रं च वाट् पातु ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः सूर्यकिरणान् युक्त्या सेवित्वा विद्याशौर्ये वर्द्धयित्वा स्वप्रयोजनं साधयेयुः ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सूर्यकिरणांचे युक्तिपूर्वक सेवन करून विद्या व शूरवीरत्व यांची वाढ करावी व आपला हेतू साध्य करावा.